‘भारत माता’
मुड़ मुड़ देख रही नज़र जो,
कहे बिना वो जो कहती है।
प्रेम भरी कोई पाती लिख,
रस धार इधर ही बहती है।
कैसे न करूँ मैं स्वागत तेरा,
कवि होकर मौन न साधूँगा।
कलम उठा कुछ गीत लिखूँ,
कर्तव्य से नहीं कभी भागूँगा।
जननी सपूत हैं हम तेरे ही,
हर भाव तेरा हम जानते हैं।
गद्गद हृदय आकुल है तू माँ,
भारत वासी तुझे मानते हैं।
साल पिचहत्तर पूर्व की कथा,
माँ आज भी हम नहीं भूले हैं।
सीनों पर खाई गोली लालों ने,
कई हंस-हंस फाँसी पे झूले हैं।
अमृत महोत्सव हम मना रहे,
चहुँ और तिरंगा ध्वज लहराता।
जाग गया अब ये देश ओ माँ,
मन गीत राष्ट्र प्रेम के है गाता।
अमृत की हो वर्षा देश में अपने,
मन में लहराये सुविचार तलैया।
भय ,रोग, चिंता सब मिट जाय,
मंद आनंद की यहाँ चले पुरवैया।
Gn-