“भारत जननी है जग की”
“भारत जननी है जग की”
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‘भारत’ जननी है, इस जग की;
जैसे रवि राजा हैं, पूरे नभ की।
‘भारत’ सा देश ना मिले दुबारा,
पर गैरों को, लगे नहीं ये प्यारा।
‘भारत’ जैसा,नही कहीं भूमि है;
तब वीर-विद्वानों ने,इसे चूमी है।
सर्व-धर्म का , बना यही सहारा;
ये माता है, जन-जन का प्यारा।
इसने, जग में मानवता पाली है;
तब इसके मिट्टी में खुशहाली है।
यहां गली-गली में,एक आशा है;
कोस-कोस पे,बदलती भाषा है।
जिसमें,जज्बा हो देशभक्ति का;
नहीं कारण है, देश-विरक्ति का।
परदेशों से, जो भी खाए मलाई;
भारत की ना सोचे कभी भलाई।
मुंह खोले हैं , देश में कुछ ‘मगर’
जिनको भारत से ही लगता डर।
इसपर, अब तो तू उपकार करो;
भारत मां की जय जयकार करो।
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……✍️पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।