भारत के राम
भारत की खुशबू हैं राम
जन जन की स्पंदन राम
तुलसी नानक संत कबीर के
शब्दों और भावों में राम।
राम नहीं हैं जाति धर्म आडंबर में
राम नहीं मिलते कपटी सिंहासन में
राम मिलेंगे हर दुखिया की आहों में
राम मिलेंगे भाई भरत की बाहों में।
हमने जितना राम को जाना
उतना क्या खुद को पहचाना?
राजनीति में राम को चुनकर
बुनते अपना ताना बाना ?
राजनीति से नहीं राम का रिश्ता है
राजपाट से मोह नहीं सब मिथ्या है।
राम नहीं केवल मंदिर के घंटों में
राम तो हैं मर्यादा के हर शब्दों में।
इतिहास उठाकर पढ़ लेना
कितने ही खूनी खेल हुए
गद्दी को पाने की खातिर
जब तलवारों से मेल हुए।
रक्त धार बहती देखेंगे
जहर घुले उन पन्नों में
पर राम नज़र नहीं आयेंगे
लालच के ऐसे अंधों में।2
धन यौवन वैभव समृद्धि
सब अहंकार के कारक हैं।
चारों थे राम के पास मगर
वे सदा विनय के साधक हैं।
वे सदा विनय के साधक हैं!!
राज्याभिषेक के क्षण को जिसने
पैरों की धूल नहीं समझा
पित्रादेश से बढ़कर जिसने
कोई पुण्य नहीं समझा।
प्रस्थान तुरत ही कर बैठे
वन के मग से नहीं घबराए,
राजपाट को त्याग दिया
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।
दुर्गम वन में फिर भटक भटक
कांटों को चूमा अलक पलक
परहित के रक्षक बन जिसने
दानव सब मारे पटक पटक।
राम अहिंसा के साधक हैं,
हिंसा प्रतिहिंसा के बाधक हैं,
पर संदर्भ ये उलटा है
कलयुग ने पासा पलटा है
जो स्वयं सृष्टि के सर्जक हैं
संयोजक और संचालक हैं,
उनको घर देने वालों सुन लो
मंदिर मस्जिद वालों सुन लो
सियाराम कहो,श्रीराम कहो
उनको शब्दों से ना आंको तुम
हरे लाल और भगवा रंग में
राम को यूं ना बांटो तुम।_२
पदचिह्नों पर चलना सीखो
मर्यादा में रहना सीखो
राजनीति का मोह त्यागकर
रामनीति पर चलना सीखो।
~करन केसरा~