भारत के अधिकारी ( व्यंग )
भारत के अधिकारी
हजार लाखों में
बात नही करते
रिस्वत के
करोड़ों के व्यापारी ।
जनता की सेवा में
नही कोई मेवा
मजे से केरते
नेताओं की चाटुकारी ।
अपना दिमाग, ईमान
कर नेताओ के नाम
जनता के सुख-दुख
में नही कोई भागीदारी ।
पढ़ के बड़े बड़े शात्र
बटोरकर शैतानी ज्ञान
आँखों में चढ़ा के त्यौरी
जनता की जेब कतरते
झलकाते मुँह पर ईमानदारी ।
फर्जी एनकाउंटर करा लो
मुर्दे को जिन्दा करा लो
हवाई किले खड़े करा लो
कालेधन को गोरा करा लो
फाइलों के ये हस्ताक्षरकारी ।
सरकार बदली,ईमान बदलता
नियम बदलता,इनाम बदला
पार्टी एजेंडा के
ये बड़े हिमायतकारी ।
दूरबीन सी दूरदृष्टि
गिद्द सी सूक्ष्मदृष्टि
पेन्सन से पहले
विधायिका में सीट के
होते सच्चे उत्तराधिकारी ।
तनख्वाह सरकारी
जिंदगी राजदारी
छुट्टी लेकर
विदेशों में उतारते
शरीर की थकान सारी ।
गांधी की तस्वीर लगाते
हिटलर हिटलर गाना गाते
लोक सेवक बनकर
लोक जीवन को
बनाते प्रलयकारी।
ट्रान्सफर से घवराते
प्रमोशन के लिए रो जाते
रिस्वत के लिए
जमीर गिरवी रख आते है
ये है सवैधानिक अधिकारी ।।।।।