“भारत की माटी”
भारत की इस माटी से, खुशबू वलिदानों की आती है ।
भारत माँ की पतित पावनी, पावन सी ये माटी है ।।
भारत माँ की गोद मे सोये, वीर बाँकुरे रहते हैं ।
इस माटी की खातिर सारे, जख्म ये खुद पर सहते हैं ।।
भाग्य उदय हो गया है मानो, जो इस माटी में जन्म मिला ।
जो हुए न्योछावर इस माटी पर, जीवन धन्य हुआ समझो ।।
भारत माँ पर शीश चढ़ाकर, बलिदानी वो गाते हैं ।
भारत माँ की पतित पावनी, वीर भूमि ये माटी है ।।
इस पावन भूमि में भी देखो, जयचंद बहुत से रहते हैं,
कैसे धूमिल करें धरा को हरदम वो ये कहते हैं ।।
उनकी जिव्हा विषधर जैसे, हरपल है फुफकार भरे ।
पर भारत माँ के वीर भी हरदम, अर्जुन से तैयार रहें ।।
भारत माँ की खतिर ही तो, ये जीवन ज्योति जगानी है,
भारत माँ की पतित पावनी, बलिदानी ये माटी है ।।
ऋषि मुनियों की तपोभूमि यह, राम कृष्ण की भूमि है ।
देवभूमि यह तपोभूमि यह, यह वीरों की कर्मभूमि है ।
विश्व गुरु फिर बनेगा भारत, परचम फिर लहरायेगा।
हर एक ऋतु होगी बसंत फिर, हो प्रफुल्ल मन गायेगा।।
गंगा जमुना की पावन धारा, सिंचित करती रहें धरा |
भारत माँ की पतित पावनी, ये मोक्षदायिनी माटी है ।।
भारत माँ की पतित पावनी, पावन सी ये माटी है ।।