भारत का बजट
भारत के संवैधानिक खाँके में, हर समस्या का समाधान रहता है।
वित्तीय फैसलों के लागू होने में, एक बजट का प्रावधान रहता है।
हर वर्ग, हर क्षेत्र को छूते हुए, वित्तीय ख़बर झटपट बन जाता है।
कई पहलुओं को ध्यान में रखकर, भारत का बजट बन जाता है।
चाहे मोटा अनाज या मोटर वाहन, हो उद्योग धंधे या कच्चा तेल।
संपूर्ण बजट में पेश होता है, हर सामग्री-व्यापार का अद्भुत मेल।
इस देश में बजट का आगमन, बचत की नई चाहत बन जाता है।
कई पहलुओं को ध्यान में रखकर, भारत का बजट बन जाता है।
कहीं दाम गिरते, तो कहीं बढ़ते और कहीं विचलन करते रहते हैं।
घर, दुकान और टी.वी. सब जगह, सब लोग मंथन करते रहते हैं।
किसी का मन खट्टा कर दे, तो किसी के लिए दावत बन जाता है।
कई पहलुओं को ध्यान में रखकर, भारत का बजट बन जाता है।
यह राजनीति का इतिहास रहा, हर प्रस्ताव का विरोध भी होगा।
उसके हर पहलू की जाँच होगी, सार्थक समुचित शोध भी होगा।
कभी तसल्ली की मुलाकात बने, तो कभी बगावत बन जाता है।
कई पहलुओं को ध्यान में रखकर, भारत का बजट बन जाता है।