भारतीय नूतन वर्ष पर
हम गर्मी के वंशज है जी और गर्मी हमको भाती है।
देख हमारी गर्मी को फिर , रूहें सबकी डर जाती है।
होंगे ठंड उपासक कितने ,जिनको ठंडक भाती होगी।
नए वर्ष की रौनक जिनमे, काफी ठंडक लाती होगी।
हे वर्ष हमारा नूतन भी , गर्माहट का परिचायक।
चैत्र शुक्ल की प्रथमा से ,जो मनता है आनन्ददायक ।
गुजरा बसन्त का सम्मोहन ,अब तपने की बारी है।
कर्मशील ही बनना है ओर कर्म ही नियति हमारी है।
खूब तपेंगे खूब करेंगे ,कुन्दन बनकर के महकेंगे।
जब स्वेद गिरेगा धरती पर ,तो स्यामल अंकुर निकलेंगे।
फिर आयेगी मौज बहारे ,अभिनंदन हमको करने।
हम भारत के वासी है ,चलते फिरते बहते झरने।
रुकना हमको कब आता है ,बढ़ते ही हम तो रहते ।
सर्दी में भी खूब पसीना , धोते भाल हमारा रहते।
दारू शारु भांग धतूरा , सारे नशे अधूरे है।
हम तो लेकर नशा राष्ट्र का ,करते सपन सभी पूरे है।
कलम घिसाई
01 04 2022