भारतीय किसान की स्थिति
जो दिन भर पसीना में लिपटा रहा,
धूप, छांव और बारिश में करता रहा,
चाहते जिसकी आसमां को छूती रही,
अन्न उपजा कर जो देता रहा।
आज उसकी हालत दयनीय है,
ऋणभोझ के अंदर वो दबता रहा,
सरकार राजनीति खेलती रही,
कृषक कर चुकाता रहा।
हालत उसकी बलहीन थी,
जिम्मेदार किसी को न ठहरा सका,
वक्त का दाव उसके विपरीत था,
इस शतरंज में सब कुछ हार गया।
अपनी तकदीर को जिम्मेदार ठहरा न सका,
यह गल्प है उस मजबूर की,
जो भारतीय किसान कहलाता रहा।