“भाभी की चूड़ियाँ”
भाभी की चूड़ियाँ,
माँ की याद बहुत दिलाती है,
माँ के ना होने के बाद,
पीहर में माँ का एह्सास बहुत कराती है।
भाभी तू न होती तो किसकी खनकती चूड़ियाँ,
घर आँगन सब सूना होता, कहती हैं ये चूड़ियां,
क्योंकि अब तो आती हूँ मैं तो,
माँ बातें नही करती, न खनकती है चूड़ियां।
भाभी संभाल कर रखना चूड़ियों को,
मेरी माँ की अरमान थी चूड़ियाँ,
ये मौन होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
सजाए रखना हाथों में, ये तुमसे कहती हैं।
कांच की ये होती है, इसमें रूप दिखते है,
हाथों को ना झटकना तुम, ये टूट सकते हैं।
भाभी जब चूड़ियां तेरी, आपस मे टकराने लगे,
चूड़ियो के आगे पीछे, सजा लेना कंगन ।
कंगन का भी प्रीत, चूड़ियों का गठबंधन,
ये चूड़ियो में भाभी तेरे, साजन का है बन्धन।
एक हाथ मे कम, एक हाथ मे ज्यादा,
होती है चूड़ियाँ,
एक ससुराल की, एक पीहर की,
होती है ये रंग बिरंगी चूड़ियाँ।
पीहर का मान-सम्मान,
ससुराल का लाज बनाये रखना ।
मेरी भाभी मुझसे एक वादा करो,
मेरी माँ और अपनी सास का मान बनाये रखना।
कभी रूठना न इन,
चूड़ियों से भाभी,
मेरी माँ ने जो दिया,
वो सौभाग्य बनाये रखना।
हाथों में तेरे बस्ती रहे,
सातों रंग चूड़ियों में,
भैया का नाम लिखा है,
तेरे एक एक चूड़ियों में।
माँ की लोरी में खनकती थी चूड़ियां,
भाभी कुछ इस तरह,
तेरी मीठी बोली में,
खनके ये चूड़ियां।
माँ की ये पूजा,
दामन को सजाए रखे,
भाभी तेरी चूड़ियाँ,
तुम्हे सुहागन बनाये रखे।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव✍🏻
प्रयागराज