भाती है तेरी खुशबू
बिन डाक आए जो वो पाती है तेरी खुशबू
यादों को एक झोंका लाती है तेरी खुशबू
चद्दर बदल न पाया उस रोज से मैं क्योंकी
बिस्तर की सिलवटों से आती है तेरी खुशबू
ये गूँजते तराने भी अजनबी नहीं हैं
मेरे लिखे ही नगमें गाती है तेरी खुशबू
गुजरा है इक जमाना तुम बिन हँसे नहीं हम
मुझको रुला रुलाकर जाती है तेरी खुशबू
जी चाहता है तुझको खुद से लपेट लूँ मैं
माना है टीस फिर भी भाती है तेरी खुशबू
गुजरा हुआ जमाना आँखों से बरसता है
तनहाइयों में जब भी छाती है तेरी खुशबू
हमको जुदा करेंगे कैसे जमाने वाले
दीपक हुआ है ‘संजय’ बाती है तेरी खुशबू