भाग्य हीन का सहारा कौन ?
एक छोटी सी बच्ची ,
उम्र है जिसकी कच्ची।
दुनियादारी से अंजान ,
दिल की है पूरी सच्ची ।
कैसे करेगी अब सामना ,
बुरा है बहुत बैरी जमाना ।
कौन दिखायेगा अब रास्ता,
नहीं रहा जब कोई अपना ।
रिश्ते दार कब किसके हुए ,
समय के कुचक्र चलते ही ,
अपने हो जाते सब पराए।
नसीब से धोखा मिलते ही ।
पहले पिता और फिर माता,
क्यों छीना उससे अरे विधाता!
वोह स्नेह वोह दुलार को तरसेगी ,
क्या नहीं ! वोह मासूम , तू ही बता
क्या होगा उसके जीवन का ,
कौन उसे राह दिखायेगा।
संघर्ष भरे पथरीले ,कंटीले पथ पर ,
कौन उसका हाथ थमेगा ?
किस्से कहेगी अपने दिल की बातें ,
कुछ राज ,कुछ पीड़ाएं ,कुछ कष्ट ।
किशोरी से युवा ,युवा से नारी बनने ,
की राह में बदलेंगे जो उसके जीवन के निजी पृष्ठ ।
सुना था कभी बुजुर्गों से ,
किसी बेटी के भाग्य में पिता हो न हो ,
मगर माता तो अवश्य रहनी चाहिए ।
एक मां ही होती है दुनिया में सबसे करीब ,
भरोसे मंद ,हितेशी इंसा बेटी के लिए
इसीलिए मां अवश्य रहनी चाहिए ।
मगर हाय ! दुर्भाग्य का ऐसा क्रूर खेल ,
या नियति का ऐसा दुखदाई मेल।
ना यहां पिता ना ही माता बची ।
बिना माली के जैसे एक मासूम कली,
रही इस प्रचंड दुख को झेल ।
जिस गुलशन का माली न हो ,
उसके फूल और कलियों को कौन पूछे ?
दुर्भाग्य शाली इस बालिका ” यशोधरा “से ,
कौन उसका हाल चाल पूछे ।
अब तो इस भरी दुनिया में,
ईश्वर ही उसका सहारा है ।
इस जीवन रूपी डूबती नैया का ,
अब वही किनारा है ।