भाग्य की तख्ती
भाग्य की तख्ती
भाग्य को क्यों कोसना ,
भाग्य तो कोरी तख्ती होती है ,
कर्मो की स्याही से रची जाती है ,
अच्छे कर्मो की स्याही से लिखी ,
तो सज गयी भाग्य की तख्ती ,
बुरे कर्मो की स्याही से लिखी ,
तो सजा बन गयी भाग्य की तख्ती ,
अपनो कर्मो की तख्ती ले ,
मैं इस दुनिया में आई ,
हर पल पुराना कर्जा ,
सूत समेत चुकाया ,
सजी तख्ती देख ,
मैं मुस्कराई ,
अच्छे कर्मों का फल ,
अपने सामने ही पाया ।
सजा की तख्ती देख ,
जब जब मैं रोई ,
बुरे कर्मो होंगे सोच ,
अश्रु रोक , सत्य को अपनाया ।
भाग्य विधाता सिर्फ हिसाब रखता है
अपना किया इंसान जरूर भोगता है ,
भाग्य को क्यों कोसना ,
भाग्य तो कोरी तख्ती होती है ,
अच्छे या बुरे कर्मो की स्याही से ,
रची जाती है ।
दीपाली कालरा
नई दिल्ली