भाग्य का फेर
अक्सर हम जो चाहते हैं ,
वैसा तो नहीं होता है ।
मगर जो नहीं चाहते हैं ,
वोह होकर ही रहता है ।
यह भाग्य का फेर है या,
हमारा प्रारब्ध कोई ।
लाख प्रयत्न करने पर भी ,
मुक्ति से युक्ति नहीं मिलती कोई ।
ज्ञात है की कोई षड्यंत्र रच रहा है ,
परंतु समझ के करेगा भी क्या कोई ?
अनजाने में ही शिकार हो कर रहता है,
अपने बचाव में उपाय सूझता नहीं कोई ।
नादान तो नादान है वोह तो फंसेगा ही ,
परंतु जो कुशाग्र बुद्धि के हैं वो?
लाख चतुराई करने पर भी फंस जाते है,
अधिक चतुर होने का दम भरते है वो।
धृतराष्ट्र जो न समझ पाया शकुनी को ,
तो समझ में आया वो नेत्रहीन यूथा।
परंतु उसकी छठी इंद्री क्या हुई ?
विवेक के बिना वोह बुद्धि हीन था ।
परंतु हस्तिनापुर के अन्य गुरुजन ,
भीष्म पितामह जैसे अनुभवी ,ज्ञानी थे।
वोह समझ चुके थे शकुनी के कपट जाल को ,
फिर क्यों न काट पाए ,क्या वोह अयोग्य थे?
आखिरकार महाभारत होना था ,
होकर ही रहा,नहीं रोक सके वंश के नाश को।
यही है भाग्य विधाता का लेख ,
जो लिख दिया उसने कोई नही मिटा सकता उसको।