भाग्यहीन मैं नारी ,हे राम
प्रेम पूर्ण परिणय टूट चूकी
लो मैं सर पीट चूकी।
किंवदंती (जन श्रुति, अफवाह ) कयास (कल्पना ) यहीं
भाग्यहीन मैं नारी , हे राम।
कहते सब बेचारी,
बोझ बन जाती ये नारी
यह सुन जीती हूँ ।
अपने आप में रो लेती हूँ।
क्या नारी भाग्य यहीं
अब अवसाद मुझे खींचती ।
हे राम
त्रेता में रोई सीता माँ ।
सुनकर गाथा ,लगे व्यथा ।
सीता माँ का दोष क्या
धीरज धर ना सकी,
हीरण के पीछे भागी ।
ये भूल थी भारी।
सदियों बीत गए राम
लम्बी सफर तय कर ली हमने
क्या होता रहेगा ? हे राम
यूँ ही नारी अपमान ।
_ डाॅ. सीमा कुमारी ,बिहार (भागलपुर ) दिनांक-11-1-21 की स्वरचित कविता जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।