भागो मत…
भागो मत…
देखो जरा इसे गौर से
क्या दिखती है ये तुम्हें ?
भोग की वस्तु, भोग्या क्या ?
पर मुझे तो धरती दिखती है…
बसंत की हरी-भरी धरती
ये धरनी है, धारण करेगी,
तुम्हारे वीर्य रूपी बीज को
संभाल कर पौधा करेगी
इंसान रुपी भ्रूण को खुद में बसेरा देगी
अब बीज संभाला है इसने
अपनी कोख की नरम माटी में
अपना ही मांस और मज्जा देगी
नै महीने तक सांसों का छज्जा देगी
रक्त से सींचेगी उसे, बांधेगी जीवन डोर से
तुम्हें पुरुष होने का बड़ा दंभ है न ?
तुम्हें अपने ही रक्त से रक्त बीज देगी
ये तुम को, तुम्हीं को सौपेगी देगी
जैसे तुम्हारी माँओं ने तुम्हारे बापों को सौंपा था
और वो तुम हो तुम सब हो, तुम सभी मर्द
और वो,वो मैं, तुम्हारी माँ तुम्हारी बीबी, बहन बेटी सब कुछ
जिसे औरत कहते हैं, गर्भधारण करने वाली ‘ममतामयी वनिता’
**
…सिद्धार्थ