भस्मासुर
चक्षु दर्शन किया
टीवी पर,
अखबार में देखा,
पढ़ा,
प्रभावित हुआ
आदर्श माना
प्रशंसक बना
उनके उद्दीप्त कौशल का ।
चर्चे चले,
देश में
सरकार ने भी,
सराबोर किया
अर्थ, पद एवं प्रतिष्ठा से,
दिया
पदम् सम्मान।
पुनः चछुदर्शन हुआ
टीवी पर, अखबारों में,मोबाइल में,
अब वो,
विक्रेता थे!
बेचते थे,
असत्य को, सत्य के भाव,
गुटखा , सुट्टा, सट्टा और शराब,
जिसे बेचते थे
हमारे, बच्चों को !
मजदूरों को!
एक बार फिर,
दिव्य दर्शन हुआ
टीवी पर, अखबारों में, मोबाइल में,
इस बार बेच रहे थे,
ज्ञान !
नशा मुक्ति अभियान पर ।
अब वे,
मुख्य अतिथि थे !
मैं व्यथित था!
चकित था!
फिर मैं,
पढ़ा,
दन्तकथा
“भस्मासुर”
अब कविता हूं
आनन्द हूं।।
~आनन्द मिश्र
साभार, फोटो अज्ञात है