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23 May 2024 · 1 min read

भव- बन्धन

भव – बन्धन

जन्म-मरण का भव बन्धन,
सुख-दुःख का यह मन्थन,
जीवों का करूण क्रन्दन
व्यथित कर देता यह मन ।

चाहे जितना हो सुख- साधन
रिश्तों में कितना भी अपनापन
हृदय में रह जाता एकाकीपन
मृत्यु- भय में होता समापन ।

आनन्द का अल्प स्पन्दन
अधीर करता पूर्णानन्द-अन्वेषन,
माया का हो जाता संज्ञान,
आत्म-स्वरूप का होता भान ।

तब संसार से विरक्त होता मन,
नाम-स्मरण में धड़के धड़कन,
प्रभु – मिलन की हृदय में तड़पन,
जीवोद्वार करते गोपाल नन्दन ।

– डॉ० उपासना पाण्डेय

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 106 Views

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