भव- बन्धन
भव – बन्धन
जन्म-मरण का भव बन्धन,
सुख-दुःख का यह मन्थन,
जीवों का करूण क्रन्दन
व्यथित कर देता यह मन ।
चाहे जितना हो सुख- साधन
रिश्तों में कितना भी अपनापन
हृदय में रह जाता एकाकीपन
मृत्यु- भय में होता समापन ।
आनन्द का अल्प स्पन्दन
अधीर करता पूर्णानन्द-अन्वेषन,
माया का हो जाता संज्ञान,
आत्म-स्वरूप का होता भान ।
तब संसार से विरक्त होता मन,
नाम-स्मरण में धड़के धड़कन,
प्रभु – मिलन की हृदय में तड़पन,
जीवोद्वार करते गोपाल नन्दन ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय