भविष्य
ना रहेगी रेत,ना ही नदी रहेगी।
ना समय रहेगा, ना सदी रहेगी।।
प्यास तो होगी पर ना पानी रहेगा।
बस पास में तुम्हारें ये नकदी रहेगी।
कँहा से लाओगे तुम ये जमीन,
गर इस तरह से बढ़ती आवादी रहेगी।
मारते रहो गर्भ मैं बेटियां तो फिर,
दुल्हन के बिना कैसी ये शादी रहेगी।
राजनीति तो खा जाएगी भाईचारा,
बस बोलने की ही आज़ादी रहेगी।
~जितेंन्द्र दीक्षित
पड़ाव मन्दिर साईंखेड़ा।