भले थोड़ा हम मुस्कुराने लगेंगे
भले थोड़ा हम मुस्कुराने लगेंगे
भुलाने में तुमको जमाने लगेंगे लगेंगे
सजाये हैं सपने जो आंखों में हमने
वही नींद इक दिन उड़ाने लगेंगे
लगी झूठ की लंबी लंबी कतारें
हो मजबूर सच मुँह छुपाने लगेंगे
टिकेगा भी कैसे ये रिश्ता हमारा
भरोसे ही जब डगमगाने लगेंगे
पकड़ जाएगा झूठ जब जब भी उनका
वो अपनी ही बातें घुमाने लगेंगे
अगर ‘अर्चना’ हम करेंगे शिकायत
वो अहसान अपने गिनाने लगेंगे
03-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद