भला अपने लिए ऐसी हिमाक़त कौन करता है
भला अपने लिए ऐसी हिमाक़त कौन करता है
चराग़ों की हवाओं से हिफ़ाज़त कौन करता है
उसूलों की बहुत सी बात करते हैं जहाँ में सब
उसूलों के लिए जाइज़ हिमायत कौन करता है
ज़रा सी बात पर इंसान सब रिश्ते भुला देता
यहाँ अपने किए पर अब नदामत कौन करता है
जिसे देखो उसे अपने ख़ज़ाने की ही फ़िक्रें हैं
ग़रीबों के निवालों की क़यादत कौन करता है
कहा बिल्कुल नहीं मैंने जहाँ सारा मुनाफ़िक़ है
मगर मज़लूम के हक़ में बग़ावत कौन करता है
~अंसार एटवी