भर लो नयनों में नीर
भर लेते नैनों में नीर,
कर लेते सुरक्षित पीर,
रूखे सूखे रिश्तों को
अगर बनाते पानी दार
शुष्क होते ताल तलैया
चारों ओर फैली वीरानी
धरती की ऊपरी तह भी
अधरों सी मुरझायी
आतप से धध के मौसम में
बार बार तुम क्यों याद आये
चलो खोजें कोई हल
कर ले कोई नयी पहल
हर मोड़ पर सिहर सिहर
आगत से न डरते
नयन भी सूखे न दिखते
भीगे भीगे इस मौसम में
बार बार तुम क्यों याद आये।