भरोसे का क़त्ल !
भरोसे का क़त्ल !
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ये तूने क्या कर डाला !
भरोसे का ही क़त्ल कर डाला !
खुद से भी ज़्यादा तुझपे ,
जिसने भरोसा किया !
उसे ही गहरा ज़ख़्म दे डाला !!
गर ऐसा ही होता रहा हमेशा ,
तो लोगों का एक दूसरे पर से
सारा विश्वास ही उठ जाएगा !
लोगों के एकाकी जीवन कटेंगे !
किसी को कोई पूछनेवाला तक
नहीं रह जाएगा !!
होना यह चाहिए कि
कोई गर फ़िक्र हमारी करता ,
तो हमें भी बखूबी
पूरे मनोभाव से
उसकी भी फ़िक्र करनी चाहिए ।
उसका बेहतर ख़्याल रखना चाहिए ।
ताकि वो खुद को कभी तिरस्कृत
महसूस ना कर सके !
समय-समय पर उस इंसान को
प्रोत्साहित करते रहना चाहिए !
ताकि उसका मनोबल बढ़ता रहे !
भविष्य के लिए वो प्रेरित होता रहे !
उत्साह और हिम्मत उसका
चरम पर आ जाए !
जिसके बल पर वह
और भी आगे बढ़कर
इंसानियत की मिसाल
कायम कर सके !
औरों को भी मदद का हाथ
वो सदैव बढ़ा सके !!
एक बात तो हम सभी को
सदैव गाॅंठ बाॅंध लेनी चाहिए !
कि भरोसे का क़त्ल
कदापि नहीं करनी चाहिए !
जो आपपे भरोसा करता है,
उसकी सारी उम्मीदें
आपही पे टिकी होती हैं !
वो आपकी बेहतरी के लिए
ना जाने ऐसे कितने सारे
खुद के हितों की भी
अनदेखी कर देता है !
आपके ही हित में शायद वो
अपनी हित भी देख रहा होता है !
ऐसे में उस शख़्स की अनदेखी करना
जो आप पे अपनी जान तक
न्योछावर करने के लिए
सदैव तत्पर रहता हो !
ये अपने आप में ही
बहुत बड़ा गुनाह है !
एक तरह का पाप है !
अतः ऐसे पाप से बचें ,
ऐसे गुनाह कदापि ना करें !
चाहे कुछ भी हो जाए….
चाहे कैसी भी विषम परिस्थिति
क्यों नहीं आ जाए….
भरोसे का क़त्ल
कदापि ना करें !
कदापि ना करें !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 11-08-2021.
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