भरोसा है नहीं अब आदमी का
भरोसा है नहीं अब आदमी का
बना उस्ताद है धोखाधड़ी का
हुआ ईमान है पैसा किसी का
बुरा भी वक़्त होगा फिर उसी का
हमें हर बार धोका ही मिला है
यक़ीं कैसे करें अब हम किसी का
ज़माने ने इसे पैदा किया है
बताओ कुछ तो हल इस मुफ़लिसी का
बुरा है पीठ पीछे ज़िक्र भी पर
करो चर्चा नहीं उसकी कमी का
नमन करता हूँ उसके हौसले को
किया है सामना उसने ग़मी का
चला आता अगर वो वक़्त रहते
चला आता वहाँ से मैं कभी का
नमन ‘आनन्द’ करता सर झुकाकर
वही मालिक है मेरी ज़िन्दगी का
– डॉ आनन्द किशोर