भरे मन भाव अति पावन….
भरे मन-भाव अति पावन, करूँ नित वंदना शिव की।
जपूँ शिव नाम की माला, करूँ आराधना शिव की।
शिवा अर्धांगिनी शिव की, करो माता दया मुझ पर,
हरो हर वासना मन की, करे मन साधना शिव की।
अहर्निश श्याम मैं नित ही, तुम्हारा नाम जपती हूँ।
विरह की आँच में प्यारे, कहूँ क्या रोज तपती हूँ।
नहीं तुम जानते प्रियवर, दशा क्या हो रही मेरी,
निहारूँ राह बस अनथक, पलक पलभर न झपती हूँ।
प्रभो तेरी कृपा की जो, तनिक बरसात हो जाए।
खुशी से झूम लूँ मैं भी, हरित मन-गात हो जाए।
अधर सूखे-रिदय सूखे, तपाते ताप हैं जग के,
मलिनता धुल अगर जाए, बदन अवदात हो जाए।
दुखों का साथ है हरदम, न सुख से वास्ता कोई।
कहाँ मंजिल मिले अपनी, न सूझे रास्ता कोई।
कदम रक्खे जहाँ हमने, वहीं ठोकर मिली हमको,
भला क्योंकर मिलें खुशियाँ, न उनसे राब्ता कोई।
नहीं चलती किसी की भी, कभी तकदीर के आगे।
पकड़ में आ नहीं पाती, कदम दो दूर ही भागे।
बड़े सपने दिखाकर ये, छकाती खूब है सबको,
जरूरत पर अकड़ जाती, कभी ना वक्त पर जागे।
न हो आश्रित कभी नर पर, इसी में श्रेय नारी का।
खड़ी हो पैर पर अपने, प्रथम हो ध्येय नारी का।
जना ब्रह्मांड है जिसने, भला कमतर किसी से क्यों ?
करे जो मान नारी का, वही हो प्रेय नारी का।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद