भरें भंडार
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भरें भंडार
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दीप आशा के जलायें दूर ये अँधियार हो ।
सुरसरी के नीर सा पावन दिलों में प्यार हो ।।1
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हर तरफ फैले अँधेरे देख कर भी मौन हैं ।
चीर दें तम का कलेजा एक ऐसा वार हो।।2
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द्वेष के बिखरे पड़े हैं हर तरफ काँटे यहाँ ।
बीन लें चुन-चुन उन्हें पथ में न कोई खार हो ।।3
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मौन कलियाँ टूट जातीं खिल न पातीं डाल पर ।
अब नहीं इतना घिनौना यूँ कहीं व्यवहार हो ।।4
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पूछता हूँ क्या सुरक्षित है यहाँ कोई कली ?
डाल के दिल में न किंचित भी कली का भार हो ।।5
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बीज किसने फूट के बोये पता हमको नहीं ।
भाइयों का एक आँगन क्यों खड़ी दीवार हो ।।6
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ऋद्धि आये सिद्धि पायें पर्व दीपों का मने ।
‘ज्योति’ की है कामना सबका भरा भंडार हो ।।7
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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