भरा जलन का खार !!
भरा जलन का खार !!
—-प्रियंका सौरभ
घर-घर में मनभेद है, बचा नहीं अब प्यार !
फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार !!
बड़े बात करते नहीं, छोटों को अधिकार !
चरण छोड़ घुटने छुए, कैसे ये संस्कार !!
स्नेह और आशीष में, बैठ गई है रार !
अरमानों के बाग़ में, भरा जलन का खार !!
कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार !
परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार !!
अगर करें कोई तीसरा, सौरभ जब भी वार !
साथ रहें परिवार के, छोड़े सब तकरार !!
बच पाए परिवार तब, रहता है समभाव !
दुःख में सारे साथ हो, सुख में सबसे चाव !!
बगुले से बगुला मिले, और हंस से हंस !
कहाँ छुपाने से छिपे, सच्चाई के अंश !!
चुप था तो सब साथ थे, न थे कोई सवाल !
एक सत्य बस जो कहा, मचने लगा बवाल !!
काम निकलते हो जहां, रहो उसी के संग !
सत्य यही बस सत्य है, यही आज के ढंग !!
#नंगों से #नंगा रखे, बे-मतलब #व्यवहार !
बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार !!
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ’ शाम।
कीच -गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम।।
कौन पालता दुश्मनी, कौन बांटता प्यार ।
शिक्षा-संस्कार सदा, दिखते हैं साकार ।।
धन-दौलत से हैं बढे, सदा धरा पर पाप ।
केवल अच्छी शिक्षा ही, मिटा सके अभिशाप।।
—-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,