भरम
आलम -ए – तन्हाई है ,
फिर ये जुस्तुजू किसकी है ,
जो बहार अब तक ना आई ,
फिर गुलों में ये खुशबू किसकी है ,
हर सम्त तीरगी है छाई ,
फिर ये रोशन शु’आ’ किसकी है ,
खामोशी का पस-मंज़र है ,
फिर ये सदा किसकी हैं ,
ख़यालो के अब्र गुम हैं ,
फिर ज़ेहन में ये सरगर्मियां किसकी हैं ,
कुछ ना कह पाऊँ , ना कुछ समझ पाऊँ ,
फिर दिल में ये बे-क़रारी किसकी हैं ,
सब कुछ लुटा देने का जुनूँ है ,
फिर ये बे-ख़ुदी किसकी है ।