भरत कुल 4
भाग 4
ग्राम में आज उत्सव का माहौल था। आम के बाग में चौपाल का आयोजन था। प्रातः से जलपान और रंगों की भरमार थी, दरियां व कुर्सियां बिछाई जा रही थी। आज सेठ भरत जी का ग्राम में आगमन था। सेठ जी के आगमन पर लघु भ्राता डॉ लखनलाल प्रातः से ही व्यवस्था में संलग्न थे। उनकी समूची व्यवस्था चाक-चौबंद थी। कोई अव्यवस्था ना हो इसका समूचा प्रबंध किया गया था। आज होली का त्यौहार था। ग्राम वासियों का कुनबा बहुत खुश था ।आज उन्हें उपहार मिलने वाला था। सेठ जी की धर्मपत्नी बीमार थी, किंतु वे सब बेखबर थे। सब होली के धुन में मस्त फाग गा रहे थे, साथ में ढोलक की थाप पर थिरकते जाते।
प्रतीक्षा की घड़ियां लंबी होती जा रही थी। सेठ जी अभी तक नहीं आए थे । अंतिम प्रहार होने को आया ।डॉक्टर लखन लाल ने प्रधान जी से कुछ कहा। कुछ बात जरूर है भैया आज तक इतना विलंब नहीं किये।प्रधान जी भी आशंकित थे ,कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी। सब कुछ कुशल मंगल तो है?
ग्राम से दो-तीन युवाओं को मोटरसाइकिल से कुछ दूरी तक हालचाल लेने भेजा। डॉक्टर लखन लाल का मन घबरा रहा था ,क्या हुआ? भैया अभी तक नहीं आए ।रास्ते में किसी बड़ी मुसीबत में तो नहीं फंस गए ।
तभी युवा दल शुभ सूचना लेकर आया कि सेठजी रास्ते में हैं। अति शीघ्र ग्राम में उनका आगमन होगा।
सायं काल का समय था, धुंधलका छाने लगा था, प्रकाश की तीव्रता कम हो रही थी। सूर्य अस्ताचलगामी थे। सूर्य की अंतिम किरण के प्रयाण के साथ श्री भरत लाल जी का काफिला ग्राम में प्रवेश करता है। सभी ग्रामीण खुशी से झूम उठते हैं। कुछ बड़े बुजुर्ग सेठ जी का मायूस चेहरा देखकर हाल चाल पूछने लगते हैं। सेठ जी ने अत्यंत दुख के साथ बताया कि उनकी धर्मपत्नी बीमार है। वे नहीं आ सकी। ग्रामीणों की रंग में भंग नहीं करना चाहते थे, अतः सायं काल पहुंचने की योजना बनाई थी। जिससे ग्राम में होली धूमधाम से संपन्न हो सके। सेठ जी की बात सुनकर सब उदास हो गए। कुछ घर की महिलाएं बहुयें सुबकने लगी। उन्हें ताई का इस तरह ग्राम में ना आना ,अच्छा नहीं लगा।
सेठजी ने गंभीर मुद्रा में सांत्वना देते हुए कहा जन्म और मृत्यु का कोई समय नहीं होता। यह सब विधि का विधान है। वही निश्चित करता है कि कब कौन कहां जन्म लेगा और कहाँ मृत्यु का वर्णन करेगा। बुजुर्गों ने विधि के विधान को स्वीकार कर हां में सिर हिलाया।
शाम का प्रकाश अंधेरे में परिवर्तित हो रहा था चौपाल में प्रकाश की व्यवस्था अविलंब की गई। जनरेटर की सहायता से प्रकाश की व्यवस्था की गई। सेठ जी सब के मध्य में विराजमान हुए ।उनके बगल में डॉक्टर लखन लाल और प्रधान जी ने आसन ग्रहण किया ।सर्वप्रथम सेठ जी ने अपने लघुभ्राता का हाल पूछा। लखनलाल लगभग उदास ,मायूस स्वर में भाभी की बीमारी पर दुख प्रकट करते रहे एवं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करने लगे।
डॉक्टर लखन लाल ने बताया कि उनके चार पुत्र हैं। बड़ा बेटा पन्द्रह वर्ष का है अन्य में दो वर्ष का अंतर है। सभी खुशहाल है और अपनी शिक्षा लगन से पूरी कर रहे हैं। उनकी पत्नी प्रज्ञा सभी का देखभाल अच्छे से कर रही है। घर में भोजन का प्रबंध उसी के हाथ में है। सेठ जी ने आशीष देते हुए लघु भ्राता से प्रसन्नता व्यक्त की। उनके बच्चों की शिक्षा -दीक्षा का भार स्वयं वहन करने की इच्छा प्रकट की। जिसे लघुभ्राता ने स्वीकार कर लिया, एवं आपना हार्दिक आभार प्रकट किया। इसके उपरांत सभी ग्रामीणों को पूर्व परंपरा के अनुसार उन्होंने वस्त्र आदि भेंट किए गए।