भरत कुल भाग-1
मिष्ठानों में रसगुल्ले का बहुत महत्व है। रसीले रसगुल्ले यदि आइसक्रीम की तरह मुंह में घुल जायें ,और गुलाब जल मुंह का स्वाद अच्छा कर दे, तो रसगुल्ले के क्या कहने। एक नन्हा सा शहर शंकरगढ़ , जहाँ रेत के टीलों का अंबार लगा रहता है। कंकरीली ,पथरीली भूमि होने के कारण यहां रेत का व्यापार होता है। इसका शीशे बनाने में उपयोग होता है। पूरा शहर रेत के कारोबार में व्यस्त है ।ऐसी बंजर भूमि पर रसगुल्ले का मीठा स्वाद अद्भुत व शीतल होता है ।ऐसा नहीं है कि, यहां सभी भूमि बंजर पथरीली है। आस-पड़ोस के ग्रामों की भूमि उपजाऊ और काली मिट्टी है ,जो बहुत अच्छी है। किंतु शंकरगढ़ से सुदूर पथरीली खानों का अंबार लगा हुआ है, जहां से पत्थर तोड़ती मजदूरों की टोली, ट्रकों की छतों पर मस्त हो गाते बजाते देखे जा सकते हैं। यह सभी दूर प्रदेश जैसे बिहार ,बंगाल या झारखंड , छत्तीसगढ़ से आते हैं। इनकी अपनी संस्कृति होती है, और ये अपने कार्य में निपुण होते हैं। सेठ भरत लाल शंकरगढ़ शहर के निवासी हैं। प्रातः उनकी दिनचर्या बाग -बगीचे में बैठकर शुद्ध हवा खाने की है ।चाय की चुस्कियों के मध्य अखबार की प्रतियां वे उलटते- पलटते देखे जा सकते हैं ।उनका बड़ा बेटा कौशल पढ़ाई का बहाना बनाकर वहां बैठा समय व्यतीत कर रहा है ।शायद किसी मित्र मंडली के लिए वह तैयार बैठा है। छोटा बेटा किशोर ,मां का हाथ बँटा रहा है। सेठ भरत लाल ने मिडिल स्कूल तक शिक्षा पायी है। किंतु, मां लक्ष्मी की कृपा उन्हीं पर अकूत बरस रही है। वे शहर के जाने-माने सेठों में अग्रणी माने जाते हैं। सेठ जी की धर्मपत्नी सुशीला अत्यंत धार्मिक एवं कुशल गृहणी है ।वह भरत लाल का बहुत ख्याल रखती हैं। भरत लाल के दो बेटे हैं, दोनों बेटों में कोई भी अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर सका है ।सेठ जी की संपन्नता का हाल यह है, कि, उनके पास 20 से भी अधिक ट्रक हैं।कई सौ एकड़ जमीन व खेत खलिहान हैं। सेठ भारत लाल अपने पिता की सबसे बड़ी संतान है, और उन का छोटा भाई लखनलाल कुशल चिकित्सक है ।वह अत्यंत होनहार व प्रतिभाशाली है। डॉक्टर लखन लाल ग्राम में रहकर ग्रामीणों के बीच अपना चिकित्सालय चलाते हैं। जब सेठ जी पर्व त्यौहारों पर ग्राम आते हैं,तब ग्राम में उत्सव का माहौल बन जाता है। सभी ग्रामीणों का हुजूम उमड़ पड़ता है ।सेठ जी सभी की समस्या का समाधान करते हैं ।सभी ग्रामीणों को त्यौहार के अवसर पर धोती- कुर्ता उत्तरीय देकर सम्मानित किया जाता है। सेठ जी ने ग्राम में एक धर्मशाला का निर्माण भी कराया है। जिसमें गांव की बहू -बेटियों की बारात ठहर सके। उनका उचित सम्मान -सत्कार हो सके। इस अवसर पर सेठ जी को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। सेठ जी के आगमन से समारोह में चार चांद लग जाते हैं।
इस अवसर पर सेठ जी शंकर गढ़ के रसगुल्लों से पूरे ग्राम का मुंह मीठा कराते हैं। समूचे गांव में शंकर के रसगुल्लों की धूम होती है।