भय
शायद गुरुर था अपनी मोहोब्बत पे,
या तेरे लिए सब हार जाने का घमंड।
पर अब ये पग क्यों कांप रहे,
जब तुझे जरूरत आन पड़ी।
कूद जाऊंगा आंखे मूंद के,
लफ्ज़ तेरे मोती मान समेट लूंगा।
पर अब ये ख्याल क्यों डगमगा रहे,
जब तुझे जरूरत आन पड़ी।
भर लूंगा तुझे अपनी बाहों में,
दुःख की छाया तक ना आयेगी।
पर अब क्यों ये हांथ कांप रहे,
जब दुनिया तुझसे आ लड़ी।
भय की धारा बहती मन में,
दिलेरी दिल में पनपती है।
और अब ना ये हांथ कांप रहे,
जब तू दुनिया से जा भिड़ी।
– सिद्धांत शर्मा