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19 Dec 2022 · 1 min read

भय की आहट

रात अँधेरी उजियारे के बिन,
जोर शोर से पवन बह जाए,
काली छाया अमावस की रात,
आसमां में तारे दीपक-सा मुस्कुराये।

आहट कानों के पट के समीप,
जोरों के धड़कन दस्तक दे जाये,
सून-सान मध्यरात्रि के गलियारे से,
बंद कपाट से गृह में कोई प्रवेश कर जाए।

तिरछी नजरों से छुप कर देखा,
नन्हीं-सी लौ के उजियारे में,
कदम बढ़ रहे और भी समीप ,
आहट भय का बढ़ाता जाये ।

रोये रोम-रोम के सचेत हुए,
मन के आँखों में पिशाच आकृति उभरे,
मुँह छुपा कर चीख निकले,
भय के आहट से काँपते जाये।

रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।

5 Likes · 2 Comments · 429 Views
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