भय की आहट
रात अँधेरी उजियारे के बिन,
जोर शोर से पवन बह जाए,
काली छाया अमावस की रात,
आसमां में तारे दीपक-सा मुस्कुराये।
आहट कानों के पट के समीप,
जोरों के धड़कन दस्तक दे जाये,
सून-सान मध्यरात्रि के गलियारे से,
बंद कपाट से गृह में कोई प्रवेश कर जाए।
तिरछी नजरों से छुप कर देखा,
नन्हीं-सी लौ के उजियारे में,
कदम बढ़ रहे और भी समीप ,
आहट भय का बढ़ाता जाये ।
रोये रोम-रोम के सचेत हुए,
मन के आँखों में पिशाच आकृति उभरे,
मुँह छुपा कर चीख निकले,
भय के आहट से काँपते जाये।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।