भभक
भभक
प्रेम,अनुरक्ति ,विरक्ति साधो,
एक प्रस्फुटन,हृदय के क्षणिक उद्वेग,
सहसा बूँद सी मानिद उज्ज्वल , शुभ्रता गुणधारक, कपोल रक्तिम
लाल लाल दाड़िमन।
धवल सी आभा एक प्रकाश बिजली कौंधन,
लालित्य नवीन नित नूतन ओजस्विता समस्त ब्रह्माँड नौ दीप
भूखंड सब कीर्तिमान स्थापित ।
अतिरेक बहाव निर्मल शुभ्र जलधारा गतिमान,
कल कल चल चल चलायमान सब अवरोध।
अवगुंठित मन,भावनाओं का शोर
क्रांति, क्रांति बस क्रांति
चहु दिशाओं में बजते नगाड़े
पूज्य हो जाते,निर्मल बेसहारे
औघड़ दानी बनते रामदानी
बहता रक्त,लाल बवंडर
त्राहि त्राहि विध्वंसकारी।
मन के खुलते द्वार
दीपों सी ज्योति
लड़ी हज़ार , सहस्र योजन फैला सागर
करते बारंबार प्रणाम , मिट जाता तम तमाम
प्रवेश होती उज्ज्वलता , शुभ्रता
अहो अहो जय जय घोष ।।
डॉ अर्चना मिश्रा