भटक रहा हर शख्स बेजार
भव सागर में प्रारब्ध लेकर
भटक रहा हर शख्स बेजार
अनजाना सा राही ज्यों भटके
पाने को अच्छा सा कोई करार
अच्छे बुरे का फर्क भी हरेक को
समझाता उसका अपना विवेक
विवेक भी तब ही जाग्रत रहता
जब ईश्वर की कृपा हो विशेष
हरि इच्छा से ही संचालित होते
जग के सारे कार्य और व्यवहार
इस सत्य को समझते गिने चुने
लोग जिन पर ईश्वर कृपा अपार
फल को ईश्वर पर छोड़ जो नित
करते रहते अपने सब कामकाज
ईश्वर ही सदा रखता है ऐसे अपने
बंदों की कदम कदम पर लाज