भटकाव
कोयल भटकी अपनी उडा़न में,
जा पहुँची कौऔं के गाँव में।
ड़री सहमी कुछ ब़ोल न पायी,
कौओं ने समझा है बिरादरी का भाई।
दुबला गया भूख प्यास उड़ान में,
सब मिल जुटे सेवा सत्कार में।
कोयल थी संतुष्ट देखकर उपकार,
विस्मृत हुआ दुष्टता का व्यवहार।
प्रसन्नता से कहा धन्यवाद का राग,
कुहूँ कुहूँ से गुंजित हुआ बाग।
बदले कौओं के तेबर लगे मारने,
समय नहीं था उसे अब भागने।
तडप तडप कर दे दी जान,
दुनिया को दिया एक पेंगाम।
बहुमत के आगे श्रेष्ट है मौन रहना,
बोलो उन्हीं की भाषा इमली को आम कहना।