*भटकाव*
प्रकृति के संग किया छेड़छाड़ भारी।
पड़ती है ठंड और हो रही है बारिश ।।
समाज में आज हम वैसा ही कर रहे ।
प्रकृति के साथ जो करके भुगत रहे ।।
इसके प्रभाव हमारे बच्चों पे पड़ रहे ।
जिसके कारण हमारे बच्चे भटक रहे ।।
दादी और नानी से किस्से था सुनता ।
होती थी उसमे नैतिकता की शिक्षा ।।
छोड़ आए उसको अपनाया नया फैशन ।
टेक्नोलॉजी के अंधी दौड़ को मान लिया जीवन ।।
कोमल हृदय है समझ अभी थोड़ी ।
ऐसी ऐसी चीजें उसके जीवन में आ जाती है ।
लगती वो अच्छी है पर कुंठा दे जाती है ।
तोड़ दिया सम्मिलित परिवार किया एकल ।
समय नहीं होता की बच्चे को देखें ।।
स्वतंत्रता इसको मिलती है बाहर ।
जिसमें वो खुश होता करता वो धारण ।।
सिनेमा भी बिगाड़ने का अच्छा है माध्यम ।
अधूरा ज्ञान जिससे वो पाता है हरदम ।।
✍️ प्रियंक उपाध्याय