भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
तब तो अंजान रहे,नहीं दिखाया कोई रोष।
अब है नजरें लज्जा से झुकी हुई आपकी ,
समाज तो आप पर ही मढेगा ना दोष ।
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
तब तो अंजान रहे,नहीं दिखाया कोई रोष।
अब है नजरें लज्जा से झुकी हुई आपकी ,
समाज तो आप पर ही मढेगा ना दोष ।