भटकती जिंदगी मे
होंठो पर है कर्ज कोई इसे खुशी कैसे कहे
जिदंगी केसी है ये इसे जिदंगी कैसे कहे
लम्हे बिताने के बाहाने हो गये पुराने सब
दिल से जामाने वो बीते नही कैसे कहे
किसे कहे अपना यहा समझे बेगाना किसको
इस सवार्थी दुनिया को सादगी कैसे कहे
तुझसे बिछूड कर जी रहे भला यूँ केसे जिऐ
अकेले भी तन्हा थे महफ़िलो मे भी कैसे कहे
छिन लिया वो सभी हमसे जो हमे अच्छा लगा
इस भटकती जिदंगी मे मिली हँसी केसे कहे