भटकता इंसान
एक नई दुनियांं की तलाश में
भटकता इंसान ।
वर्तमान को नकारता
भविष्य की खोज
करता इंसान ।
सुकून की लालसा में
जगत से निकल
भागता इंसान।
एक अनदेखे सुख की तलाश में
प्राप्त खुशियों को नष्ट
करता इंसान ।
लेकिन ये तो निवृति है
ग्लानि और पलायन की ।
यह तो विरक्ति है
निष्कर्म बुद्धि की ।
नई दुनियांं तो
जन्म और मृत्यु के बीच है ।
जो आज है वो कल नही
जो कल है वो आज नही ।
इसलिए नई दुनियांं तो
यहीं है- यहीं है ।