भजन
जब प्रेम से भरा हुआ, था सबका मन छला गया
हृदय में रहता था जो वो, हृदय लिये चला गया
भोर हो तो ब्रज में सब, थे जिसके मुख को ताकते
रात्रि के प्रहर में भी तो , संग स्वाँस-स्वाँस नाचते
साँझ की प्रतीक्षा भी, घर उसी के लौटने से थी
दिन के हर क्षण में भी, बस लीला उसकी ही तो जी
दिन-रात उनके लुट गये, मोहन का क्या भला गया
हृदय में रहता था जो वो, हृदय लिये चला गया…
वो छोड़ सबको यूँ गया, फिर नैनों को दिखा नहीं
जो जीने का आधार था, वो मरके भी मिला नहीं
प्रतीक्षा भी वही था और, प्रतीक्षारत भी था वही
त्रुटि भी उसी की थी, और वो ही था जो था सही
जो सुख ही का पर्याय था, वो दुःख में क्यूँ जला गया
हृदय में रहता था जो वो, हृदय लिये चला गया….
सुरेखा कादियान ‘सृजना’