भजन: रामचंद्र कह गए सिया से
आज से पचास पचपन वर्ष पूर्व इस भजन को लिखनेवाला सच में एक महान व्यक्तित्व होगा जो अपनी दिल और दिमाग से इन लोगों के चरित्रों को पढ़ा और इस महान भजन को लिखा है। यह भजन आज हो रही सभी घटनाओं को चरितार्थ कर रहा है-
रामचंद्र कह गए सिया से
हे जी रे… हे जी रे…
हे जी रे…
हे रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से
ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे जी रे…
सिया ने पूछा भगवन!
कलयुग में धर्म – कर्म को
कोई नहीं मानेगा?’
तो प्रभु बोले
धर्म भी होगा कर्म भी होगा
धर्म भी होगा कर्म भी होगा
परंतु शर्म नहीं होगी
बात बात में मात-पिता को
बात बात में मात-पिता को
बेटा आँख दिखाएगा
हे रामचंद्र कह गए सिया से…
राजा और प्रजा दोनों में
होगी निसिदिन खेचातानी खेचातानी
कदम कदम पर करेंगे दोनों
अपनी अपनी मनमानी,
हे…
हे जिसके हाथ में होगी लाठी
जिसके हाथ में होगी लाठी
भैंस वही ले जाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे रामचंद्र कह गए सिया से…
सुनो सिया कलयुग में
काला धन और काले मन होंगे
काले मन होंगे
चोर उच्चक्के नगर सेठ,
और प्रभु भक्त निर्धन होंगे
निर्धन होंगे
जो होगा लोभी और भोगी
जो होगा लोभी और भोगी
वो जोगी कहलाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खरग
हे रामचंद्र कह गए सिया से…
मंदिर सूना सूना होगा
भरी रहेंगी मधुशाला, मधुशाला
पिता के संग संग भरी सभा में
नाचेंगी घर की बाला, घर की बाला
हे कैसा कन्यादान पिता ही
कैसा कन्यादान पिता ही
कन्या का धन खाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से
ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे जी रे…
हे मूरख की प्रीत बुरी
जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ ते भागे ही भागे,
भागे ही भागे
हे काजल की कोठरी में
कैसे ही जतन करो
काजल का दाग भाई लागे ही लागे भाई
काजल का दाग भाई लागे ही लागे
हे जी रे… हे जी रे…
हे कितना जती को कोई कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे,
जागे ही जागे
सुनो कहे गोपीराम जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही लागे रे भाई
उसका तो फंद गले लागे ही लागे
हे जी रे… हे जी रे…
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण | गायक – महेंद्र कपूर | संगीत – कल्याणजी आनंदजी | फ़िल्म – गोपी | वर्ष – 1970
जय हिंद