भगिनि निवेदिता
भगिनी निवेदिता—-
नंदू अपने परिवार में अकेला ऐसा सदस्य था जिसके ऊपर उसके बाबा भाई बहन कि निगाहे लगी रहती उन दिनों नंदू कि पारिविक स्थिति ठीक नही थी आय का कोई श्रोत था नही और नंदू अपने पैतृक गांव जाकर खेती बारी में खुद को उलझाना नही चाहता था।
नंदू ट्यूशन पढ़ाता और परिवार का भरण पोषण करता नंदू छोटे भाई बुद्धिपाल एव बहन कुष्मांडा बाबा एव दादी के साथ रहता ।
बहन का विवाह भी नंदू ने अपने मित्र भोलेन्द्र के चचेरे भाई से तय किया विवाह जैसे तैसे सम्पन्न हुआ कुष्मांडा अपने ससुराल चली गयी ।
परिवार में सिर्फ बाबा छोटा भाई और दादी साथ रहती ट्यूशन पढ़ाने के साथ साथ नंदू नौकरियों के लिए अर्जी देता लिखित परीक्षाओं में सम्मिलित होता लेकिन उसका चयन कहीं नही होता ऐसी कोई परीक्षा नंदू ने नही दी थी जिसकी मेरिट में वह न रहा हो लेकिन साक्षात्कार में वह कभी सफल नही हुआ ।
इसी बीच उसे भारतीय जीवन बीमा कम्पनी में विकास अधिकारी के लिए चयनित किया गया उस दौर में इस नौकरी को कोई भी होनहार नौजवान बहुत अहमियत नही देता था आज हालात विल्कुल बदल चुके है और अब यह पद आकर्षक एव गर्व अभिमान है ।
नंदू को गोरखपुर के पिपराइच एव खोराबर विकास खंडों में बीमा व्यवसाय के विकास की जिम्मेदारी विभाग द्वारा सौंपी गई जिसे वह प्राण पण से निभा रहा था।
बहन कुष्मांडा के पति देवरिया जनपद कि छितौनी चीनी मिल में कार्य करने लगे थे सब कुछ धीरे ठीक होता प्रतीत हो रहा था ।
बहन कुष्मांडा ने एक पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से नंदू ने ही निवेदिता रखा ।
कहते है भाग्य भगवान के खेल बड़े निराले है जो उस पर भरोसा करे उसका भी जो भरोसा ना करें उसका भी वह भला ही करता है ईश्वर से बड़ा न्यायाधीश ब्रह्मांड में कोई नही इस बात को नंदू ने स्वंय ईश्वर के निकट जाकर देखा भी महसूस भी किया वह भी तब जब सारे रास्ते समाप्त और आशा कि किरण कि जगह सिर्फ निराशा का अंधकार।
यह सत्य उस समय कि
आश्चर्यजनक एव ईश्वरीय वास्तविकता थी नंदू कि बहन कुष्मांडा अपनी दाई साल की एक मात्र पुत्री को लेकर भाई के घर बड़े गर्व से आई थी मई जून का महीना था तभी नंदू कि बहन कुष्मांडा कि एक मात्र संतान भगिनी निवेदिता को बुखार की शिकायत हुयी जिसके लिए स्थानीय स्तर पर इलाज चला लेकिन कोई लाभ नही हुआ और बीमारी बढ़ती गई एक दिन ऐसा आया जब स्थानीय चिकित्सको ने यह कह दिया कि भगिनी निवेदिता को मेनिनजाइटिस दिमागी बुखार है इसका बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है नंदू का छोटा भाई उन दिनों भारत नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र ठूठी बारी में कबाड़ का व्यवसाय करता था वह था नही सिर्फ बहन कुष्मांडा एव भाई नंदू ही था बाबा भी उस समय कही धार्मिक अनुष्ठानों में व्यस्त थे।
बहन कुष्मांडा ने जब डॉक्टरों द्वारा यह सुना कि निवेदिता का बचना नामुकिन है यदि खुदा ना खास्ता बच भी गयी तो किसी विकलांगता का शिकार हो जाएगी वह फुट फुट कर रोने लगी नंदू को यह अपराधबोध सताने लगा कि यदि निवेदिता उसके पास मरी तो जीवन भर के लिए अपयश उसके ऊपर लग जायेगा ।
बिना बिलंब किये नंदू उठा और छोटे भाई के दोस्त को साथ लिया और स्थानीय डॉक्टरों से सलाह लिया डॉक्टरों ने बहुत स्प्ष्ट कहा निवेदिता के बारे में (सी इज नो मोर ) आप चाहो तो इसे गोरखपुर किसी बड़े अस्पताल ले जाकर संतोष कर ले ।
नंदू के छोटे भाई के मित्र कि मोटरसाइकिल पर भगिनी निवेदिता को गोद मे लिए बैठा जिसकी धड़कने नही चल रही थी छोटे भाई का मित्र बोला भईया आप वेवजह परेशान हो रहे है यह मर चुकी है इसका जल परवाह कर देते है कुछ दिन दीदी रोयेगी फिर सब कुछ सही हो जाएगा नंदू बोला निवेदिता मेरे गोद मे है वह मर नही सकती यदि मर भी गयी है तो यमराज को उसके प्राण वापस देने होने।
नंदू के छोटे भाई के मित्र को लगा कि ऐसी स्थितियों में आदमी आपा खो देता है और कुछ भी बोलता रहता है वह कुछ बात विवाद के बाद मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चल पड़ा बीच बीच मे बोलता जाता भईया बेवजहे गोरखपुर जा रहे है हम लोग कोई फायदा नही होने वाला फिर भी वह मोटरसाइकिल चलता रहा लगभग आधे घण्टे पैंतालीस मिनट में नंदू भगिनी निवेदिता को गोद मे लिए गोरखपुर जिला अस्पताल के आकस्मिक वार्ड पहुंचा जहां ड्यूटी पर डॉ कृपा शंकर मिश्र जी थे जो सौभाग्य से नंदू के रिश्ते में बहनोई लगते थे उन्होंने निवेदिता कि विधिवत जांच किया और बोले तुम भी नंदू जानते हुए बेवकूफ बनने और बनाने कि कोशिश करते हो देखते नही यह मर चुकी है तुमने अस्पताल को मुर्दाघर बना दिया है।
नंदू के छोटे भाई का मित्र बगल में खड़ा बोल पड़ा डॉक्टर साहब हम तो पहले ही कह रहे थे कि गोरखपुर जाने से कोई फायदा नही है नंदू रिश्ते में बहनोई और ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर डॉ के एस मिश्र से बोला डॉ साहब आप सिर्फ एक कोशिश कीजिये उसके बाद जो भी होगा मुझे कोई शिकायत नही होगी डॉ के एस मिश्र बोले इसकी नब्जे धड़कन कुछ भी तो नही चल रही है इसे इंजेक्शन भी इंटरावेनस या मास्क्युलर नही दिया जा सकता इलाज होगा तो करे ।
नंदू ने गोद मे लिए भगिनी निवेदिता को डॉक्टर के एस मिश्र के टेबल पर रखा और बोला डॉक्टर साहब अब आप जो कुछ भी कर सकते है करे डॉ के एस मिश्रा को पता नही क्या सुझा उन्होंने टेबल पर मृत पड़ी निवेदिता के छाती पर जोर जोर से मारना शुरू किया करीब दो तीन मिनटों में भगनि निवेदिता के मुहँ से एक चीख निकली और उसकी धड़कने बहुत तेज चलने लगी डॉ के एस मिश्र ने उसे तुरंत आकस्मिक लाइफ सेविंग इंजेक्शन दिया और ऑक्सीजन लगाकर इलाज हेतु भर्ती कर लिया और बोले नंदू निवेदिता को आज ईश्वर ने तुम्हारे निवेदन पर जीवन दिया है वर्ना मेडिकल साइंस तो हार चुका था मैंने भी तुम्हारी जिद्द पर इशें रिवाइव करने कि थिरेपी दिया उसके बाद निवेदिता की जांच एव मेनिनजाइटिस कि चिकित्सा शुरू हुई।
ठीक उसी दिन नंदू के बड़े भाई के साले कि शादी थी जिसमे डॉक्टर के एस मिश्र को जाना था बोले यदि निवेदिता ऐसे ही वापस लौट गई होती तो शायद मैं शादी समारोह में जाने का साहस नही कर पाता नंदू ने कहा डॉक्टर साहब यदि ईश्वर सत्य है तो वह यह अवश्य देखता है कि उससे याचना करने वाला योग्य है या नही याचना ध्यान देने योग्य है या नही तब वह निर्णय लेता है भगिनी निवेदिता के लिए नंदू कि याचना थी ईश्वर इंकार नही कर सकता था क्योकि उंसे तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सत्य मालूम है ।
निवेदिता स्वस्थ हुई और उसके बाद वह कभी बीमार पड़ी हो जानकारी नंदू को नही है और निवेदिता पर मेनिनजाइटिस का साइड इफेक्ट ही है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उतर प्रदेश।।