भगवान सुनता क्यों नहीं ?
जमाने भर की फिक्रें हैं,
बेशुमार , जिनका कोई हिसाब नही ।
अरमान ,तमन्नाएं ,आर्जुएं ,
इनका भी कोई हिसाब नही ।
समस्याएं है रोज उगती कुकर्मुत्ते सी ,
इन सबका निवारण संभव नहीं।
सपनों की हैसियत तो पूछो ही मत,
रोज बनते और टूट जाते है ।
क्योंकि इनकी नियति यही है ।
अब सवाल यह आता है मन में,
आखिर भगवान सुनता क्यों नही ?
भगवान आसमान से नीचे देखता ही नहीं ,
तो सुनेगा क्या ?
यदि वोह किस्मत से कभी सुन भी ले,
तो करेगा क्या?
समंदर जैसी तुम्हारी समस्याएं ,
बेहिसाब तमन्नाएं ,बेशुमार सपने,
वगेरह वगेरह!?
वोह कहां तक पूरी करे ?
थक जायेगा बेचारा !!
किस समस्या के लिए तुम वरदान मांगोगे ,
और वोह किस किस को पूरी करेगा?
पुरातन काल में मनुष्य का जीवन बहुत साधारण था,
कोई विशेष ,असंख्य इच्छाएं ही नही थी ।
इसीलिए भगवान द्वारा पूरी हो जाती थी ।
और वोह भी हजारों हज़ारों साल तपस्या करने पर ।
क्या तुम कर सकते हो ऐसी कठिन तपस्या?
है इतनी हिम्मत?
तो बस ! मत पुकारो भगवान को ।
मत दो उसे कोई कष्ट ।
वर्तमान में जो कुछ भी है ,
सब मनुष्य द्वारा ही उत्पन्न किया गया है ,
इसीलिए मनुष्य स्वयं निबटे।
घड़ी घड़ी भगवान को क्यों पुकारा जाए,
और यह उलाहना भी न दिया जाए,
की भगवान सुनता क्यों नही ?