भगवान भी शर्मिन्दा है
कितनों के तुम दिल तोड़ोगे,
बस अब खत्म करो ये सिलसिला,
बेवफाई भी तुम से शर्मिन्दा है।
कितनों को तुम जीते जी मारोगे,
बस अब रोको ये काफ़िला,
अब तो मौत भी तुम से शर्मिन्दा है।
कितनों के घर बर्बाद करोगे,
अब शहर का हर शख़्स बेहाल हो चला,
अब तो दुराचारी भी शर्मिन्दा हैं।
कब तक यों कत्लेआम करोगे,
शराफ़त के नाम का बहुत व्यापार हो चला,
अब तो हैवानियत भी शर्मिन्दा है।
कब तक ईमानदारी का पुलिन्दा बनोगे,
बहुत ईमान बाज़ार में बिक चला,
अब तो बेईमान भी शर्मिन्दा है।
छोड़ो भी अब तुम,नहीं कर पाओगे,
अब यहाँ तो इन्सान भी बिक चला,
अब तो बस भगवान भी शर्मिन्दा है।