भगवान जगन्नाथ की आरती
(गुरु नानक देव जी अपनी उदासियों (धार्मिकयात्राएं) के दौरान भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने जगन्नाथ पुरी आए थे। जब वह दर्शन करने पहुंचे उसी समय भगवान जगन्नाथ जी की आरती उतारी जा रही थी,उसी समय गुरु नानक देव जी को परमात्मा की दिव्य आरती वंदन के भाव आए थे,जो सुंदर शब्दों में प्रकट हुए थे,जो उस समय चैतन्य महाप्रभु के साथ मंदिर में गाए।वह दिव्य भाव एवं शब्द गुरुवाणी में शामिल है। उनका भाव यह था कि सारी सृष्टि भगवान की आरती उतार रही है, आसमान आरती का थाल है, सूरज चंदा दीप हैं,मलयागिर पर्बत से जो पवन आ रही है बस धूप बत्ती है, धरती पर जो सुमन खिले हैं बह भगवान को अर्पित हो रहे हैं, सभी जीवों में ज्योति भगवान की जल रही है। उनके भाव को मैंने हिंदी में अपने शब्दों में कहा है।)
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
सृष्टि उतार रही आरती, शोभा वरनि न जाए तिहारी
आसमान के थाल में प्रभु, जगमग जड़े सितारे
सूरज चंदा के दीपों से, नयन दमक रहे रत्नारे
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
मलयागिरी की मंद पवन से, महक रही सृष्टि सारी
नाना पुष्प सुशोभित, अर्पित करती धरती सारी
धूप और अगर चंदन से, महक रही दुनिया सारी
सप्त सिंधु सब पावन सरिता, नीरांजन करें तिहारी
वन पर्वत और प्रकृति में, छवि कही न जाए तुम्हारी
एक ओंकार एक निरंकार से, उत्पन्न हुई सृष्टि सारी
सब जीवो में नूर तुम्हारा, झूम रहे नर नारी
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
बिन काया हैं नेत्र सहस्त्रों, असंख्य हैं कर पाद प्रभु
आनन बिन षटरस लेते ,विन कानन सुनते बात प्रभु
निरंकार से सब जग जन्मा, जीवन ज्योति तुम्हारी
निराकार साकार प्रकट्या, जीवों में ज्योति तुम्हारी
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
सप्तदीप नवखंड, दसों दिशा उजियारी
सप्त स्वरों में करें आरती, आनंदित सृष्टि सारी
बरस रहा है प्रभु प्रेमामृत, पान करें नर नारी
हे जगन्नाथ भगवान ,महिमा कही न जाए तुम्हारी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी