भगवान जगन्नाथ की आरती (०१)
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
सृष्टि उतार रही आरती, शोभा वरनि न जाए तिहारी
आसमान के थाल में प्रभु, जगमग जड़े सितारे
सूरज चंदा के दीपों से, नयन दमक रहे रत्नारे
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
मलयागिरी की मंद पवन से, महक रही सृष्टि सारी
नाना पुष्प सुशोभित, अर्पित करती धरती सारी
धूप और अगर चंदन से, महक रही दुनिया सारी
सप्त सिंधु सब पावन सरिता, नीरांजन करें तिहारी
वन पर्वत और प्रकृति में, छवि कही न जाए तुम्हारी
एक ओंकार एक निरंकार से, उत्पन्न हुई सृष्टि सारी
सब जीवो में नूर तुम्हारा, झूम रहे नर नारी
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
बिन काया हैं नेत्र सहस्त्रों, असंख्य हैं कर पाद प्रभु
आनन बिन षटरस लेते ,विन कानन सुनते बात प्रभु
निरंकार से सब जग जन्मा, जीवन ज्योति तुम्हारी
निराकार साकार प्रकट्या, जीवों में ज्योति तुम्हारी
हे जगन्नाथ भगवान, महिमा कही न जाए तुम्हारी
सप्तदीप नवखंड, दसों दिशा उजियारी
सप्त स्वरों में करें आरती, आनंदित सृष्टि सारी
बरस रहा है प्रभु प्रेमामृत, पान करें नर नारी
हे जगन्नाथ भगवान ,महिमा कही न जाए तुम्हारी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी