भगवन तुम कब आओगे
हे भगवन तुम कब आओगे
हो रहा यहां अत्याचार
सह रहे यहां रक्तपात
दीनानाथ तुम कब आओगे
लग रहा है यहां लाशों का ढेर
हो रहे इन्सान यहां राख के ढेर
पालनकर्ता तुम कब आओगे
मुरझा रही यहां प्रकृति
बिखर रही यहां धरा
सर्जनहार तुम कब आओगे
टूट रही मरियादाए यहां
खो रहे संस्कार यहां
पुरूषोत्तम तुम कब आओगे
हो रहे पैदा राक्षस यहां
करते मानवता का नाश यहां
संहारक तुम कब आओगे