भगत सिंह का आह्वान जन्मभूमि को
मेरा कुछ नहीं यहाँ सब कुछ तो तेरा है
मेरा जीवन तो केवल यहाँ बसेरा है
तेरी कृपाओं ने मुझे चारो ओर से घेरा है
तू नहीं तो मेरे लिए फिर सब अंधेरा है
मैं रहूँ या ना रहूँ पर तू स्वाभिमान मेरा है
घनघोर अंधकार के बाद उज्ज्वल सवेरा है।
तेरा ऋण परम और मैं हूँ अकिंचन
तेरी महिमा का कानों में मेरे फिर गुंजन
प्रतिज्ञ हूँ अब और करता नहीं मैं मंथन
मृत्यु का भी सहर्ष स्वीकार मुझे आलिंगन
किंचितमात्र भी कफन का नहीं मुझे चिंतन
नित्य शिश झुकाकर करता हूँ मैं तेरा वंदन।
ये धरती हुई है हरदम लालों से लाल
फिर भगत सिंह उसमें है सबसे बेमिसाल
मुझमें भी हो जाए फिर ऐसा एक कमाल
मैं भी तो हूँ तेरी ही कोख का नौनिहाल
शक्ति दे मुझे अब रूप धरूँ मैं विकराल
अर्पित है यह जीवन तुझको तू ही मुझे सम्भाल।
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.