#भक्त_हूँ_गुलाम_नहीं!
मेरे जी हुजरी का, लेते तुम सलाम नही।
अजी मैं भक्त हूँ, तेरा नहीं गुलाम कोई।।
तूने कभी गौर से, न देखा है पयाम कोई।
अजी मैं भक्त हूँ, तेरा नहीं गुलाम कोई।।
कभी मै फ़र्ज़ करूँगा, कभी कोई मर्ज कहूँगा।
कभी आपबीतियों का, तुझसे अर्ज़ करूँगा।।
मेरे इस बेरुखी से, तुझपे न इल्ज़ाम कोई।
अजी मैं भक्त हूँ, तेरा नहीं गुलाम कोई।।
मुझे तो शक भी होगा, मेरा ये हक़ भी होगा।
तुझसे पूछूँगा मैं सवाल, जो नाहक भी होगा।।
देख ले बन्दिशों में, मैं छुपा गुलफाम नही।
अजी मैं भक्त हूँ, तेरा नहीं गुलाम कोई।।
किस कदर मेरा दिल, बहलाएगा मालूम नही।
किस कदर काम तू मेरे, आएगा मालूम नही।।
पर मेरी सोच न की, खुद ही ले ईनाम कोई।
अजी मैं भक्त हूँ, तेरा नहीं गुलाम कोई।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १६/१०/२०१९ )