भक्तिभाव एक लकवा
गिरे तो गिरे
पर
इससे ज्यादा और
ना गिरें,
पदासीन लोगों को
हमदर्दी
इसमें भी चाहिए,
उठाने दौड़ी जनता,
झट से
फिर धड़ाम गिरे,
जब भी
समर्थन खिसका
हररोज नया किस्सा
बँटते रहा रोज हिस्सा,
छोड़े अब किस्सा,
माथे पर हाथ मथकर,
सो गया थक कर,
पढ़े लिखे खासकर,
रोज़गार न पाकर,
देशहित में है,
बिल्कुल नहीं लोफर,
छोड़े व्यर्थ पट्रोल, डीजल, गैस के दाम की बातें,
घर घर में शराब के लाइसेंस पाकर,
डूबती अर्थव्यवस्था सभ्यता और संस्कृति को ख्याल में रखकर,
अहोभागी जानकर,
देश को समर्पित,
नये नये रोजगार के भविष्य संजोकर,
मुद्दे व्यर्थ हैं,
देशहित जैसी कोई कहानी नहीं है,
कभी चौकीदार नाम के आगे लिखकर,
विवादित नारों में
सनातन शाश्वत पाने का भ्रम पालकर,
गहरी नींद सो गया,
जो हुआ अच्छा हुआ,
जो हो रहा है अच्छा हो रहा है,
जो होगा वह भी अच्छा ही होगा,
गहरी निद्रा में सो गया,
समाज को दुखी कर कर.
ऊँगली उठाने वाले के साथ लगकर,
विद्रोह को तर्क से दबाने की सोचकर,
भूल गये उनके पापा भी तो खड़े हैं
उसी पायदान पर,
देखो ऊँगली उठाकर,
गिनती करो
कितनी है खुद की ओर,
याद आया,
राज कर रहे,
इसी तरह गोभी खोदकर,
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस