ब निगाहें करम मुस्कुरा दो तुम(नज़्म)
ब निगाहें इताब तुम न देखा करो हमको ऐसे,
ब निगाहें करम मुस्कुरा दो तुम जरा एक बार l
निगाहें शौक से देख लेंगे मोतियों का बिखरना,
ये भीगी जुल्फें बिखरा दो तुम जरा एक बार l
मालूम है जुबां से कुछ कह नहीं पाओगी,
इश्क आंखों से जता दो तुम ज़रा एक बार l
मेरी शाम आखिरी है इतनी मेहरबां करना,
अपनी बाहों में सुला लो तुम ज़रा एक बार l
देखते ही मुंह फेर लेती हो जाने क्यों आजकल,
मेरी ख़ता क्या है बता दो तुम ज़रा एक बार ?
तुम्हें जब तक न देखे गुमसुम गुमसुम रहते हैं,
ऐसा क्या है तुममें बता दो तुम ज़रा एक बार l
दुष्यंत का तेरे शहर में दोबारा आना नहीं होगा,
जो दिल में है वफ़ा लुटा दो तुम ज़रा एक बार l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल